Tuesday, November 10, 2009

कागद कारे ......कभी कोरे रह नहीं सकते


वन्दे मातरम
भारत और ऑस्ट्रेलिया का मैच हमारे लिए सचिन के 17000 रनों की शौगात लाया मगर भारत फिर भी मैच हार गया ..........दर्शको को बहुत निराशा हुई . मगर इसी बीच एक ऐसी खबर आई जिसने हर उस बन्दे को झकजोर के रख दिया जो जुडा हुआ है अपनी आत्मा से ,जो जुडा हुआ है राष्ट्र प्रेम से जो जुडा हुआ है उसूलों से , जो बनाना चाहता है सच का प्रहरी .
खबर थी की राष्ट्र का अनमोल रत्न हिंदी भाषा का प्रहरी .पत्रकारिता का यश ..सत्य की वेदी का प्रहरी ..आदरणीय श्री प्रभाष जी जोशी ने अपना शरीर त्याग दिया है ...प्रभाष जी के बारे मैं शायद ही कोई ऐसा सज्जन हो नहीं जनता हो ..और मैं उनके बारे मैं क्या लिखूं मैं अभी इतना सामर्थ्य नहीं रखता हूँ की मेरी लेखनी उस महान आत्मा को प्रणाम के अलावा कुछ लिख पाए .........
उस दिन एक राष्ट्रीय समाचार पत्र की खबर थी की "कागद कारे अब कोरे ही रह जायेंगे ".......यह सोचने का विषय है ...
मुझे याद है की एक पत्रिका "द पब्लिक एजेंडा " मैं महात्मा गाँधी जी के ऊपर प्रभाष जी ने एक लेख लिखा "गाँधी तेरी पोथी पूजा के काम "
सभी विद्वानी जन जानते हैं की शरीर नष्ट होता है और प्रभाष जी का शरीर भी नष्ट हुआ है मगर अब हम उनके आदर्शों की पूजा करेंगे .. हम चौराहे पर एक मूर्ति लगा करा उस पर उनके जयंती और पुण्य तिथि मनाएंगे ..दीप जलाएंगे ,किसी का सम्मान करेंगे ,माल्यार्पण करेंगे , कार्यक्रम को अच्छी तरह पेश किया जायेगा .............और वही सब होगा जो आज गाँधी जी और उनकी पोथी के साथ हो रहा है .जो कि प्रभाष जी तो कभी नहीं चाहते थे
.सिर्फ पूजा की जायेगी
मैं यहाँ किसी की तुलना नहीं कर रहा मैं तो बस प्रभाष जी एक श्रद्धांजलि देने का प्रयास कर रहा हूँ अपने अंदाज़ मैं और शायद उस अंदाज़ मैं जो मैंने उनसे सीखा है ....
पत्रकारिता जगत की इतनी महान हस्ती थे के वे हमेशा पत्रकारों को उसूलों का पाठ पड़ाते रहे और मीडिया को उसकी भूमिका याद दिलाते रहे .....और जब भी जरुरत पड़ी भटकती हुई मीडिया को ,व्यापारी बन चुकी मीडिया को राह पर लाने कि उन्होंने कड़े शब्दों मैं आलोचना करते हुए मीडिया को राह पर लाने का प्रयत्न किया ...
आज जरुरत है प्रभाष जी याद करने की तो हमें कायम रखना होगा खुद को अपने उसूलों पर , हमें समझोता वादी प्रक्रिया से बचकर सत्य की लडाई जिन्दा रखनी होगी .कागद कारे लिखे जाये ...........उसमें वो लोग लिखे जो खुद के आदर्शों मैं प्रभाष जी को मानते हैं ....हमें अपने जीवन की दैनिक दिनचर्या मैं हर उस बात को शामिल करना होगा जो की एक स्वस्थ राष्ट्र की आवश्यकता है .प्रभाष जी का जीवन हमें हमें अपनी राह पर आगे बढने की प्रेरणा देगा ..हमें आत्म शक्ति प्रदान करेगा .. " कागद कारे" .......अब समाज की दिशा और दशा को आदर्शवादिता की ओर लाने हेतु गलियों मैं गांवों मैं और हर नुक्कड़ पर लिखे जायेंगे ....प्रभाष जी की कलम से लिखा हुआ हर शब्द हमें खुद को देखने का आइना प्रदान करता है...बस अ़ब यह सभ्य समाज पर निर्भर करता है कि वो उनकी पूजा करेगा या उनके आदर्शों का अनुशरण करके इस लडाई को जिन्दा रखेगा ..........
जो प्रभाष जी को पड़ता था या है वह एक बदलाव कि भावना अपने मन मैं अवश्य रखता है ऐसा मेरा मन कहता है ....मैं खुद उनसे कभी मिल नहीं पाया मगर मैंने हमेशा उन्हें अपने बीच पाया है .हमेशा उनके लेखों मैं उनके जीवन का सजीव चित्रण देखा है ....
इस भारतीय को यह विश्वास कि " कागद कारे " कभी कोरे राह ही नहीं सकते .
प्रभाष जी को सलाम जय हिंद

Sunday, April 26, 2009

ए भाई जरा देख के ......ये पार्क ......???

वंदे मातरम

नमस्कार मेरे साथियों

तेज चिलचिलाती धूप मैं दोपहर को मैं अपनी टैक्सी से उतरकर निजामुद्दीन स्टेशन की और रुख कर रहा था . महाकौशल एक्सप्रेस से मुझे दिल्ली से ग्वालियर जाना था तभी मेरे दोस्त का फोन आया की ट्रेन बहुत ही लेट है .तकरीबन घंटे लेट थी मेरी ट्रेन .स्टेशन पर इन्तजार करने से बेहतर मुझे लगा की मैं यहीं आसपास की दिल्ली को घूम सकता हूँ .अपने मन मैं इस विचार को लेकर मैं रिंग रोड की तरफ़ आगे बड़ा . मेरे बायीं तरफ़ एक बहुत ही विशाल और भव्य पार्क था .लोगों से जानने पर पता चला की ये यहाँ का सबसे बड़ा पार्क "इन्द्रप्रस्थ पार्क " है .मैं थोड़ा सा आगे चलकर पार्क के मुख्य प्रवेश द्वार पर पहुँचा की इतने मैं मेरे कुछ साथी भी फोन करके वहां गए

हम लोगों ने अन्दर प्रवेश किया तो वाकई पार्क बहुत ही हरा भरा और सुन्दर था चारों तरफ हरियाली और प्राकृतिक शौन्दर्य अपनी अनुपम छठा बिखेर रहा था . हम पार्क मैं घूम ही रहे थे की हमारी नजर वहां पर बैठे एक प्रेमी युगल पर पड़ी . वो वहां पर पेड़ की छांव के नीचे कुछ अपने ही अलग अंदाज़ मैं आराम फरमा रहे थे . हम थोडा आगे बड़े तो वहां कई युगल बैठे हुए थे . कुछ पेड़ की झाडियों के पीछे ,कुछ घास मैं , कुछ नीचे की तरफ कुछ कहीं कुछ कहीं .......................
इन युगलों मैं से अधिकांश लड़के लड़कियां एक दुसरे से अश्लील हरकतें कर रहे थे .या कहें तो प्यार की खुलेआम वर्षा कर रहे थे , मैं यहाँ बस यही लिख सकता हूँ की वहां पर जो हो रहा था उसे मैं शब्द नहीं दे सकता इतनी अश्लील हरकतें हो रहीं थी ...

हमने पूरा पार्क घूमा वहां पर हमको न तो कोई बच्चा खेलते हुए दिखाई दिया और न ही कोई बुजुर्ग वहां पर आराम फरमा रहा था ..
अब यहाँ बात आती है की मैं कहीं उन प्रेमी युगलों की निजी स्वतंत्रता तो भंग नहीं कर रहा तो मेरे हिन्दुस्तानी साथियों हम सामाजिक जीवन जीते हैं है जहाँ रिश्तों की , भावनाओं की क़द्र होती है एक सम्मान होता है उसे हम स्वतंत्रता का सही उदाहरण मान सकते हैं नाकि अश्लीलता की वर्षा स्वतंत्रता है .

हमारा जीवन सामाजिक है और सामाजिक जीवन मैं आप ऐसे सार्वजानिक स्थान पर जहाँ कि बच्चे खेलते हो ,बुजुर्ग आराम फरमाते हो , जहाँ प्रकृति का सादगी पूर्ण आनंद लेने लोग आते हैं वहां पर इस प्रकार कि हरकतें खुलेआम होना हमारे समाज कि वर्तमान दिशा बता रहा है कि हमारा समाज किस ओर जा रहा है . अगर आपको प्रेम की खुलेआम वर्षा करनी है तो आप स्वतंत्र हैं मगर आप इस तरह उसे न करे की अक्षय कुमार जी भी अपनी पेंट की बटन को आपके प्यार के तरीके के सामने छोटा महसूस करें .
भाई मैं ये लिख रहा हूँ तो लोग समझते होंगे कि समाज कि दिशा का चिन्तक बनने कि कोसिस कर रहा हूँ तो भाई मेरा इस्ख से सिर्फ इतना उद्देश्य है कि आप अगर सामाजिक प्राणी हैं और अश्लीलता से बचना चाहते हैं तो ............ जरा देख के इन पार्कों कि ओर रुख करना .....

वन्दे मातरम

Friday, April 3, 2009

हत्या संपादक की नही , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हुयी है

वंदे मातरम




नमस्कार हिन्दुस्तानी साथियों




पिछले दिनों आपने एक बहुत महत्वपूर्ण ख़बर सुनी होगी की "असम मैं एक संपादक की हत्या "। असम मैं "असमिया" भाषा के दैनिक अखबार "आजि "ke संपादक श्री अनिल मजुमदार जी की सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई । दरअसल देखा जाए तो ये हत्या संपादक महोदय की नही बल्कि भारतीय संविधान के उस अधिकार की है जिसे हम "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार "कहते हैं । श्री मजुमदार उन दिनों सरकार और उल्फा की बातचीत के पक्ष मैं लिख रहे थे । मजुमदार जी जब शाम को कार्यालय से लौटकर घर पहुंचे तो सात लोगों के समूह ने उन्हें रोककर और उनको गोलियों से भून दिया ।









आज अगर देखा जाए तो देश जिन परिस्थियों से गुजर रहा है उसमें हम तक सच्चाई और घटना क्रम की जानकारी का पहुंचाकर हमको सचेत करता है वह है हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मीडिया .ऐसे मैं जब अकेले असम मैं ही जब ६ वर्षों मैं २२ पत्रकारों की हत्या हो चुकी है तो हम कहाँ तक अपने लोकतंत्र को सुरक्षित समझते हैं ।









अगर नेताजी को कोई भी धमकी क्या दे देता है उसको "जेड प्लस " सुरक्षा प्रदान कर दी जाती है । लेकिन पत्रकारों की हत्याएं हो रहीं है ,देश मैं आए दिन चाहे जहाँ बम ब्लास्ट हो जाते हैं सैकड़ों निर्दोष आम नागरिक मारे जाते हैं ,आजाद भारत मैं उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी ?सीमा पर अपनी जिंदगी देश की suraksha करते हुए bita चुके जवान अपने पदक वापस कर रहे हैं । अगर कलम के सिपाही इसी तरह मारे जाते रहेंगे तो कुछ नेक दिल और बहादुर तहरीर ऐ जवान बचे हैं वो भी धीरे धीरे समाप्त होते जायेंगे । मगर मैं प्रणाम करता हूँ मजुमदार जी को की उन्होंने जान कुर्बान कर दी मगर ईमान नहीं ।









हम भारत के नागरिक हैं हमें ये समझ लेना चहिये की चाहे आतंक वाद हो ,नक्सलवाद हो या भी क्षेत्रीय अपराधीकरण हो ,तस्करी हो या फ़िर घुसपैठ ये हमारे गंदे राजनेताओं की गन्दी सोच और कर्मो के karan बढ रहे हैं । हम इससे मुक्त नही हो पा रहे हैं, पत्रकार तक सुरक्षित नही हैं तो आम आदमी कितना सुरक्षित है आप सब समझते हैं ?हमारी कमजोर राजनितिक इच्छाशक्ति से हमने निजात नही पाई और इसी प्रकार से " अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "की हत्या होती रही तो वह दिन दूर नही जब ये देश vinash के कगार पर पहुँच जाएगा ।




मजुमदार जी को सलाम .......

Sunday, March 22, 2009

कल क्या है ?पता नहीं !.........शहीद दिवस पर आज का युवा

वंदे मातरम
छात्रों के एक समूह को चौराहे के पास खड़ा देखकर उनके बीच जाने का मन हुआ। जब मैं पहुँचा तो देखा कि पार्टियों के प्रचार और बालीवुड के सितारों की कामयाबी की चर्चा कर रहे छात्रों को देखकर थोडी सी हैरानी हुई । मन नही मानाऔर मैंने पूछा की भईया आप लोग चर्चा बहुत कर रहे हैं आप बताएं की कल २३ मार्च को कौन सा विशेष दिन है । उन्होंने सोचा और बोले न किस डे है , न चोकलेट डे है , न हृतिक का जन्म दिन है ..........वे बोले की भईया हमें नही पता कि कल क्या है । मैंने पूछा की १४ फरबरी को क्या???? कह भी नही पाया की आवाज आई भईया वेलेंटाइन डे ........ मुझे ज्यादा आश्चर्य नही हुआ क्योंकि यह अक्सर होता है । जब मैं हताश सा हुआ चलने लगा तो उनमें से एक ही सक्श बोला की भईया ये तो बताओ की कल क्या ।
मैंने कहा कि कल "शहीद दिवस "है कल २३ मार्च के ही दिन १९३१ को शहीद-ऐ-आज़म सरदार भगत सिंह साहब जी ,सुखदेव जी और राजगुरु साहब जी को अंग्रेजी सरकार ने फांसी दी थी ।
यह जानकारी जब उन्हें पता चली तो उनको यह जानकर कुछ ज्यादा रोमांचक नही लगा और न ही कोई प्रतिक्रिया मिली और वे वहां से बातें करते हुए निकल गए ।

ये है हमारे लोकतान्त्रिक भारत की वर्तमान आधुनिक तस्वीर । मेरे इस कथन को देश के बड़े बड़े विद्वान यह कहकर भी धता बता सकते हैं की "ये सबका पर्सनल इंट्रस्ट है हमें उन पर इसे थोपना नही चाहिए "। यह उनकी स्वतंत्रता का अधिकार है ।

अगर यह है स्वतंत्रता के मायने तो मैं आज ये भी कहने से नही हिचकूंगा कि आज भी भारत गुलाम है । हमारी मनोवृत्ति गुलाम है । हमारे संस्कार कुंठित हैं । हमारा रक्त लाल नही है । हमारी नैतिकता समाप्त हो गई है ।

आम तौर पर देखा जाए तो ज्यादातर हमारे टी. व्ही .चैनल ,हमारे अख़बार और अन्य सूचना के साधनों पर बड़े जोर शोर से प्रसारित किया जाता है कि आज सलमान का ,आज हृतिक का जन्म दिन है और ये देखिये वो किस तरह से केक कट रहे हैं और ये केक का टुकडा गिर गया । आईये इनके ज्योतिषी को बुलाते हैं और पूछते हैं की केक क्यों गिर गया? कौन सा ग्रह ख़राब है ? यह साल कैसा जाएगा ?

ये वेलेंटाइन डे पर किस तरह प्रेमी प्यार का इजहार कर रहे हैं ... ये राखी ने अपने अपने बॉय फ्रेंड को थप्पड़ मारा......इसकी आवाज सारा देश सुन रहा है ........ये धोनी ने बाल कटवा लिए ......ये राहुल गाँधी गरीब के घर खाना खा रहे हैं ......अरे गजब हो गया , ये हो गया ,वो हो गया इसकी शादी टूट गई ,उसकी शादी हो गई ....ये इसका टॉप खिसक गया उसका कुरता फट गया .......................................
शायद सरदार भगत सिंह ये देख रहे हों तो उन्हें बड़ा ही बुरा लग रहा होगा ..... कि क्या सोचा था कुर्बानी देते वक्त और ये क्या हो रहा है ..........

shaheedon की प्रतिमाये चौराहों पर लगा दी गयीं हैं मगर उन पर पक्षी बीट कर गन्दगी कर रहे हैं ,धूल जम रही है । मगर किसे फिक्र है, किसे याद है की ये भी हमारे लिए कुर्बान हुए थे ।

मैं आधुनिकता के विरोध मैं नही हूँ माँ का मोम हो गया कोई बात नही माताजी का नया नाम ममी/मम्मी हो गया पिताजी का डेड हो गया कोई बात नही ।
दूध की जगह शराब और कोल्ड ड्रिंक्स ने ले ली कोई बात नही सबका अपना स्वास्थ्य है । युवा आधुनिकता की जगह अश्लीलता को अपनानता जा रहा है कोई बात नही आपकी स्वतंत्रता है .....मान मर्यादाएं कुछ नही कम्प्यूटर का युग है चलिए ये भी छोड़ दे ।
मगर ये कतई बर्दास्त नही होता की हम अपने उन शहीदों को भूल जाए जो हमारी पीडी को आजाद कराने के लिए हमसे भी सुंदर स्वस्थ जवानी कुर्बान कर गए । हम उनको भूल गए जो हमारे लिए हंसते हँसते फंसी पर चढ़ गए । अरे हम किस घमंड मैं हैं क्या हम स्वामी विवेकानंद की बराबर विद्वान हैं ,क्या आजाद जी और बिस्मिल साहब ,अशफाक जी की तरह जोशीले हैं । क्या गाँधी जी की बराबर धेर्यवान हैं नही । हम तो कुछ भी नही हैं उनकी महानता के आगे अभी ।

क्या हमरे इतिहास की गलती रही है की हमें कुछ नही सिखाया । या फ़िर हमारे परिवार की । युवा भूल रहे हैं की हम ही संस्कार हैं और हम ही नाकारा नेताओं पर अंकुश लगा सकते हैं तो हम ही ऐसे हो गए तो कौन बचायेगा देश को भेडियों से । उन भेडियों से जो

१.जनरल मानेकशा जैसे देश भक्त सिपाही की अंत्येष्टि मैं नही जा सके और छुट्टियाँ माना रहे थे शिमला मैं ।
२.जो संसद हमले की १३वि वर्षी पर ७०० मैं से पन्द्रह ही श्रधांजलि देने आए मुझे लगा की चुनाव आने वाले हैं नही तो ये १५ भी.......
३.जिनके सामने पदक प्राप्त देश के वीर अपने अपने पदक वापस कर रहे हैं ।
४.जो आतंकवाद मुठभेड़ मैं शहीदों और उनके परिवारों को भी अपनी कलि जुबान से नही बक्शते ।
क्या क्या कहूँ सब जानते हैं आप सब
बस यही कहना चाहूँगा की आधुनिकता के रंगों मैं इतना मत रंग जाओ किअपने शहीदों और वीरों का सम्मान करना भी भूल जाओ क्योंकि तब वो शहीद हुए थे और आज सेनिक ।
वो भी किसी के भाई ,बच्चे ,पति और पिता होते हैं ।
अगर वो अपना कम छोड़ दें तो सोचा है कि क्या होगा ??????????....................................

सोचो और लौट आओ ..इतना दूर मत जाओ कि ख़ुद ही खो जाओ .......
वंदे मातरम
शहीदों को नमन ,
जीवन पुष्प चड़ा चरणों मैं मांगें मातृभूमि से यह वर ,
तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहें न रहें ।





Tuesday, March 17, 2009

"जय हो " कांग्रेस की चाटुकारिता की परम्परा की !

वंदे मातरम
नमस्कार साथियों ,

हमारे देश मैं चाटुकारिता की प्रथा तो कितनी पुराणी है ये आप अच्छी तरह से जानते हैं । आजकल इसका एक जीता जगता रूप संगीत के मध्यम से निकलकर आया है ।

भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस आजकल अपने लोकसभा चुनावों मैं जनता को लुभाने हेतु चुनावी प्रचार प्रसार और जोड़ तोड़ मैं है । सभी पार्टियों की तरह ये भी इन्टरनेट ,संगीत ,बेनर ,रेडियो, टी.व्ही , आदि पर प्रचार जोरों पर है । आप इन सभी पार्टियों के प्रचार के गीत या विडियो देखेंगे तो पाएंगे की इनसे बड़ा राष्ट्र भक्त न तो कोई था और नही हो पायेगा ।

कल जब मैं दूरदर्शन पर समाचार सुन रहा था समाचार समाप्त होने के बाद मैंने अचानक "जय हो" (रहमान साहब की धुन पर गया गया गाना) की धुन सुनी तो मेरा उसे देखने का मन हुआ । मगर वो गाना नही निकला वो तो कोंग्रेस का प्रचार गीत था जो की मंदी मैं भी खूब जोर दिखा रहा था ।

गीत को जब पूरा सुना तो मैं सोचने लगा की इसमें " नेहरू जी क्या सिखाया ,इंदिरा जी ने क्या दिखाया ,राजीब जी ने क्या सुनाया ,और सोनिया जी क्या फार्म चुकी हैं और क्या फरमायेंगी " आदि कुछ था ।

गीत ने प्रचार तो किया मगर चाटुकारिता सिद्ध कर दी की हाँ नेहरू परिवार ही देश और कांग्रेसियों का भाग्य विधाता है । अगर सही रूप मैं कांग्रेस का प्रचार होता तो महात्मा गाँधी, मोलाना अबुल कलाम,सरदार बल्लभ भाई पटेल, शास्त्री जी अवं अनेक देशभक्त कांग्रेसियों का जिक्र भी होता मगर फ़िर चाटुकारिता या कहें तो वास्तविक स्थिति का पता नही चल पता ।

अब आप ही विचार करें की भा.जा.प् .की तरह कर्म कांडी हो चुकी कांग्रेस का रूप कितना खतरनाक और चाटुकार हो गया है .जो की कांग्रेसियों की चाटुकारिता को स्पष्ट करता है ।

अब तो जनता ही बताएगी की वह अभी भी इनकी गुलामी और चाटुकारिता करेगी या नही ।

वंदे मातरम

Monday, March 16, 2009

पाक जनता को एक और लॉन्ग मार्च करना होगा आतंकवाद के खिलाफ

वंदे मातरम

साथियों,

आज पाकिस्तान मैं जनता की शक्ति के सामने दुष्टों को झुकता हुआ देख बहुत ही प्रसन्नता हुयी .पड़ोसी देश मैं लोक तांत्रिक आशा की किरणे निकली आब ये किरने कितना उजाला करती हैं ये तो वक्त ही बताएगा ।

मगर अभी पाकिस्तान की जनता को आराम नही करना है क्योंकि अभी भी इंसानियत का दुश्मन जिन्दा है "आतंकवाद " के रूप मैं ।
हाल ही मैं पाकिस्तान मैं तालिबान के बड़ते हुए होसलों को देखकर कोई भी हैरान हो सकता है । दुनिया मैं चाहे कोई भी कुछ सोचे मगर बिना पाकिस्तान की जनता की पहल के कोई भी आतंकवाद को ख़त्म नही कर सकता ।

आज पाकिस्तानी जनता को ख़ुद की ताकद का एहसास होना चाहिए और विश्वास होना चाहिए की वो चाहें तो शान्ति स्थापित हो सकती है ।
उनको अपनी पूर्ण सकती लगाकर पाकिस्तान मैं सेना के अत्याचार , जरदारी की तानाशाही, और तालिबान की बदती हुयी मानवता की दुसमन शक्ति को बढने से रोकने और जड़ से समाप्त करने हेतु तुंरत उठ खड़े होना चाहिए ।


दुनिया जानती है की अगर काँटों को बुओगे तो कांटे ही पाओगे .और वह नासूर बनकर तुम्हारे ही सीने मैं चुभने लगेंगे । पाकिस्तान को इसका उदाहरण मिल चुका है । मगर अब हिन्दी की उस कहावत मैं भरोषा करते हुए की "जब जागो तभी सवेरा " पाक जनता को आतंक के खिलाफ सख्त होकर कार्यवाही हेतु घरों से फ़िर लॉन्ग मार्च को निकलना चाहिए ।

जब बन्दूक मैं से गोली निकलती है तो न तो धर्म पूचाती और नही ही जाती और देश । वह तो बस इंसानियत नष्ट करना जानती है ।

उठो पाकिस्तानी आवाम और दिखा दो दुनिया को की तुम्हारे उपर कोई मानवता का दुश्मन राज नही कर सकता चाहे वह कोई भी हो । फ़िरसे जरुरत है आतंकवाद को मिटने हेतु एक सकारात्मक लॉन्ग मार्च की ।

जय हो जनता जनार्दन

वंदे मातरम
वसुधैव कुटुम्बकम



लॉन्ग मार्च , जनता जनार्दन की "जय हो "

वंदे मातरम

साथियों ,

आज सुबह पाकिस्तान के इतिहास मैं वो घड़ी गुजर गई जो की इतिहास मैं लिखी जायेगी । आलम बहुत भयावह था । एक ओर संशाधनों से लेस इंसानियत के दुश्मन , दूसरी ओर जनता । पता नही की कितनो को मारा जाएगा । मगर जनता ने जिद पकड़ी , आगे बड़ी ओर सच्चाई के सामने गुनाह झुक गया ।

यही आलम देखने को मिला जब पाक प्रधानमंत्री गिलानी साहब ने जनता की जिद के आगे झुककर अपने निर्णय सुनाये।

अब ये तो वक्त ही बताएगा की ये निर्णय पाकिस्तान मैं किस हद तक लोकतंत्र ओर शान्ति स्थापित कर पाएंगे मगर महात्मा गाँधी के आन्दोलनों की यादें ताजा हो गयीं थी लॉन्ग मार्च का नजारा देखकर ।

पाकिस्तान की जनता ने जिस तरह हर खतरे को सहन करते हुए धारा १४४ को लांघकर सडको पर उतरकर न्याय ओर लोकतंत्र के लिए संघर्ष किया उसका अन्तिम मकसद क्या होगा ये नही कह सकता मगर जनता की जीत हुयी है "जय हो " जनता जनार्दन की । आखिर किसी भी देश का लोकतंत्र वहां की जनता निर्धारित करती है। जब गुनाहगारों ओर इंसानियत के दुश्मन जनता पर ही आत्याचार करने लगते हैं तो उन्हें जनता ही सबक सिखाती है ओर जनतंत्र मैं जनता ही जीतती है । लेकिन अभी इंसानियत के दुश्मनों को सबक सिखाना बाकी रह गया है ।

जय हो जनता की

वंदे मातरम